ना उम्मीद
ना उम्मीद हो तो पाने की कैसे सोंचे
चोट जिनसे हो खाई उनके सिरहाने की कैसे सोचे।
बैठे रहते हैं ख़ामोश बनकर इन चुप सी दीवारों से
दीवारों से फिर बातों की कैसे सोचें।
- ख़ामोश
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