फूल
शायद सिमटी हुई थी
उस फूल की पत्तियां।
वक़्त के अंधेरों में
सिमटी हुई सी
ऐसे लग रही थी
के जैसे बिखरने को हों।
हल्की रोशनी बनकर
मैं उसमें समां गया,
और सुबह की नमीं में
मैंने उसे खोलने की कोशिश की।
वो खिल गयी
और एक खिलता हुआ
फूल बन गयी।
- ख़ामोश
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