क्यूँ अकेला हूँ
घनी खुशियों की शायें हैं
मगर फिर भी अकेला हूँ,
निगाहें तन्हा तन्हा सी
पुकारें क्यूँ अकेला हूँ।
टपकती आस्था मन से
सुलगते दिल पर जब गिरती,
उठे धुआं जो हल्का सा
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।
तरसते होंठ चुप-चुप से
किसी को सोच जब खुलते,
निकलती आह हलकी सी
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।
पुरानी यादों में जाकर
सिमटती बाहें जब तन से,
बनी गर्मी सी हलकी सी
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।
- ख़ामोश
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