Monday, November 12, 2012

क्यूँ अकेला हूँ

क्यूँ अकेला हूँ 

घनी खुशियों की शायें हैं 
मगर फिर भी अकेला हूँ,
निगाहें तन्हा तन्हा सी 
पुकारें क्यूँ अकेला हूँ।

टपकती आस्था मन से 
सुलगते दिल पर जब गिरती,
उठे धुआं जो हल्का सा 
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।

तरसते होंठ चुप-चुप से 
किसी को सोच जब खुलते,
निकलती आह हलकी सी 
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।

पुरानी यादों में जाकर 
सिमटती बाहें जब तन से,
बनी गर्मी सी हलकी सी  
पुकारे क्यूँ अकेला हूँ।
                                                - ख़ामोश 



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