कोई मौज मिली
कोई मौज मिली कोई मस्ती मिली
और दर्द की अहा भी खूब मिली,
रग-रग में बसे यूँ सतरंग से
उन्माद सी उर में खूब मिली।
आँखों से छलकते अश्कों को
रंगों की रहा में फेर दिया,
उषा की अदा में खिलते हुए
फूलों की छठा में गेर दिया।
सपने जो तड़पते थे दिल में
पलकों पर खुद ही धुल से गए,
और रंग मिले यूँ मस्ती के
आँखों में समाकर घुल से गए।
- ख़ामोश
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