कैसा कारवां है ये
कैसा कारवां है ये
और कहाँ तक जाएगा,
कितने मिलने हैं राह में
और कितने छोड़ जाएगा।
अजनबी बन जाते हैं दिलबर
और दिलबर बिछड़ जाते हैं,
न जाने कितने खूँ कोई
दिल के करवाएगा।
कितने सपने बुने जाते
और बिखर जाते हैं,
कब तक बटोरता कोई
तिनकों को बनाएगा।
राह-ए-मंजिल कभी ऊँची
तो कभी सिमट जाती है,
कब तक अपना आसमां कोई
जमीं तक लाएगा।
कितने अश्क यूँ ही संभाले
और बिखर जातें हैं,
कब तक माला बनाए कोई
और पिरोये जाएगा।
- ख़ामोश
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