Monday, November 12, 2012

सिलसिला चलता रहा

सिलसिला चलता रहा 

कोरे कागज पर तेरा चेहरा 
बनाता रहा मिटाता रहा,
रात ढलती गयी 
और ये सिलसिला चलता रहा।

तेरी आंखें बनायीं 
तो कुछ खवाब सा बना,
तेरा चेहरा बनाया 
तो कुछ गुलाब सा बना,
और ये सिलसिला चलता रहा।

घनी बारिश सी 
कागज पर होने लगी, 
तेरी जुल्फें घटाओं सी 
जब बनने लगी,
और ये सिलसिला चलता रहा।

चाँद खिल सा गया 
और मेरा कमरा चमक सा गया,
तेरे माथे पर जब मैंने 
बिंदिया लगायी,
और ये सिलसिला चलता रहा।
                                                - ख़ामोश 



No comments:

Post a Comment