अँधेरे में आईने में सूरत देखता हूँ
तड़पती आँखों का शबब
आशा के चिराग पर सेकता हूँ,
और फिर उन आँखों को
थोडा सा छलकाकर,
अँधेरे में आईने में
सूरत देखता हूँ।
कांपते होठों की आह पर
ठंडी यादों का मल्ल्हम लेपता हूँ,
और फिर उन होठों को
उंगलिओं से सीकर,
अँधेरे में आईने में
सूरत देखता हूँ।
अपनी हर तन्हा रात को
कागज के टुकड़ो पर लिखता हूँ,
और फिर उन अक्षर को
धीमें से गुनगुनाकर,
अँधेरे में आईने में
सूरत देखता हूँ।
- ख़ामोश
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