नहीं ये और मत कहना
गर्दिश-ए-दौर आते हैं
बिछड़ना दिल का होता है,
के मंजर तन्हा लम्हें हों
नहीं ये और मत कहना।
हम हैं ख़ामोश लहरें सी
के शायद ढूँढती साहिल,
के साहिल दूर हो जाए
नहीं ये और मत कहना।
सुना एक फूल खिलता है
इन पत्थर और दीवारों पर,
के बहारें जा रही है अब
नहीं ये और मत कहना।
हमारी भी एक बसती है
जहा से वो गुजरते हैं,
के राहों में निशां ढूंढे
नहीं ये और मत कहना।
किताबों में पढ़ा हमने
मोहब्बत है दीवानों की
के पागल ये खड़ा देखो
नहीं ये और मत कहना।
- ख़ामोश
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