इजहार प्रेम का
इजहार प्रेम का कैसे करूँ
मुझको ये आता ही नहीं,
हाँ प्रेम मगर इतना ज्यादा
अब और सहा जाता ही नहीं।
तुम्हे देख सखी एक ही पल में
मैं सुध्बुद्ध अपनी खो बैठा।
पर चाँद चकोरी से मिलने
वो दिन क्यूँ आता ही नहीं।
तुम आँखों में जबसे हो बसी
दिन चैन नहीं रत चैन नहीं,
इस कमल से मिलने को कमली
क्यूँ वक़्त कभी अत ही नहीं।
- ख़ामोश
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