पलकों पे
पलकों पे अपनी
तुम को बिठा कर,
दूर समंदर
में ले जाऊ।
लहरें बनेंगी
जो बलखाती,
उन लहरों पर
घर में बनाऊ।
कभी किनारा
कभी समंदर,
की मजधार में
तुम को घुमाऊ।
कभी सीप में
तुम संग छिप कर,
कहीं दूर तक
बहा चला जाऊ।
- ख़ामोश
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