Wednesday, October 31, 2012

पलकों पे

पलकों पे 


पलकों पे अपनी 
तुम को बिठा कर, 
दूर समंदर
में ले जाऊ।

लहरें बनेंगी
जो बलखाती, 
उन लहरों पर 
घर में बनाऊ।

कभी किनारा 
कभी समंदर, 
की मजधार में 
तुम को घुमाऊ।

कभी सीप में 
तुम संग छिप कर, 
कहीं दूर तक 
बहा चला जाऊ।
                                         - ख़ामोश 

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