प्रेम
मैंने तुमसे निष्चल निष्वार्थ प्रेम किया
कभी सूरज की पहली किरणों में
कभी खिलते फूलों में
कभी बारिश की बूंदों में।
तुम ही मेरे पास चल कर आई
सूरज की पहली किरणे बन कर
खिलते फूलों की खुशबू बन कर
बारिस की बूँदें बन कर।
मैं बाहें फैलाये खड़ा रहा
और तुम मुझे रंगती रही
मेरी सांसों को महकाती रही
मुझे भिगोती रही।
अब तुम जा रही हो
बहुत दूर-बहुत दूर
मुझे रंगकर, महकाकर
और भिगोकर।
- ख़ामोश
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