Wednesday, October 31, 2012

प्रेम


प्रेम 

मैंने तुमसे निष्चल निष्वार्थ प्रेम किया 
कभी सूरज की पहली किरणों में 
कभी खिलते फूलों में 
कभी बारिश की बूंदों  में।

तुम ही मेरे पास चल कर आई 
सूरज की पहली किरणे बन कर 
खिलते फूलों की खुशबू बन कर 
बारिस की बूँदें बन कर।

मैं बाहें फैलाये खड़ा रहा 
और तुम मुझे रंगती रही 
मेरी सांसों को महकाती रही 
मुझे भिगोती रही।

अब तुम जा रही हो 
बहुत दूर-बहुत दूर 
मुझे रंगकर, महकाकर 
और भिगोकर। 
                                                   - ख़ामोश 




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