हसरत-ए-दिल का कोई एतबार नहीं
हसरत-ए-दिल का कोई एतबार नहीं
आज ख़ुशी कल गम, कोई गुलशन-ए-बहार नहीं।
ख़लिश लेता है कभी, तो कभी मरह्हम लेता है
रिश्वत लेता है, मगर दरोगा सा गुनाहगार नहीं।
मोहब्बत करता है, कोई गुनाह तो नहीं करता
खुदा से वफ़ा की है, बेशक़ दुनिया का वफादार नहीं।
सोहबत-ए-शाब है और दाग-ए-फ़िराक है
शुक्र है एक गरीब की तरह बेकार तो नहीं।
हालत बयां नहीं करता, खूँ में भीगा होकर भी
इसे मालूम है, इसका कोई मददगार नहीं।
मंदिर-ओ -मस्जिद में जाकर क्या करेगा 'ख़ामोश'
खुदा तो है, मगर किसी का भी सलाहकार नहीं।
-ख़ामोश
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