तुम्हारी आँखों में बसने को
तुम्हारी आँखों में बसने को हम
न जानें कब से तड़फ रहे थे,
है आज का दिन जश्न का दिन
के न जाने कब से तरस रहे थे।
पड़े थे अब तक कफ़न में लिपटे
मरे थे तेरे ही कुछ सितम से,
सितम को कर-कर के याद तेरे
ने जाने कब से तड़फ रहे थे।
तुम्हारी बाँहों में रखा सर है
कतल करो या जिगर में ले लो,
तुम्हारी बाँहों में मरने को हम
ने जाने कब से तरस रहे थे।
- ख़ामोश
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