कोई नागिन चुपके चुपके
कोई नागिन चुपके-चुपके
आँखों में यूँ बस गयी,
नींद अपनी चैन अपना
रातें अपनी डस गयी।
थी बजुज क्या या इलाही
खुद को समझा उनके काबिल,
उनकी कातिल-ए-हंसी पर
क्या क़यामत कर गयी।
जुल्फ़ें अबरी होंठ सीरी
खुल्द से ही आई होगी,
हम क्या बहके उस परी पर
ख़ाक हमको कर गयी।
- ख़ामोश
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