थोड़ा वक़्त
थोडा वक्त अगर मिल जाता
उन नाजुक लम्हों की कश्ती को,
थोडा बहाव अगर मिल जाता
उस छूटे साहिल की बस्ती को।
क्या मंजर था जो गुजर गया
छूती लहरों में फिर उभर गया,
जरा पीछे मुड़कर देखो माही
तेरा सफर यही है ठहर गया !
- ख़ामोश
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