तुम पर कविता मैं केसे लिखुँ
तुम पर कविता मैं कैसे लिखुँ
जब कविता ही तुमको पिरोए हुए है।
इन जुल्फों को कैसे कहूँ मैं घटा
जब सावन ही जुल्फों में सोये हुए है।
इन आँखों को कैसे कहू मधुशाला
जब मदिरा ही तुमको भिगोए हुए है।
इन गालों को कैसे कहूँ मैं गुलाब
जब गुलाब ही क़दमों में खोये हुए है।
- ख़ामोश
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