Friday, November 9, 2012

इजहार प्रेम का

इजहार प्रेम का 

इजहार प्रेम का कैसे करूँ 
मुझको ये आता ही नहीं,
हाँ प्रेम मगर इतना ज्यादा 
अब और सहा जाता ही नहीं।

तुम्हे देख सखी एक ही पल में
मैं  सुध्बुद्ध अपनी खो बैठा।
पर चाँद चकोरी से मिलने 
वो दिन क्यूँ आता ही नहीं।

तुम आँखों में जबसे हो बसी 
दिन चैन नहीं रत चैन नहीं,
इस कमल से मिलने को कमली 
क्यूँ वक़्त कभी अत ही नहीं।
                                                         - ख़ामोश 




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