Thursday, November 8, 2012

यूँ ही

यूँ ही 

वो चली जाती है, मगर 
फिर भी रह जाती है यहीं-कहीं, 
वो मेरा कुछ ले जाती है, मगर 
ले जाती कुछ नहीं।

शराबी आँखों में डूबा
झलक लूं ज़ाम की कोई, 
मेरी आँखों में वो अरमां 
यूँ बना जाती है कई।

कभी छलके न मदिरा 
हसीं होटों से कहीं,
ले उठा जाम के प्याले 
कदम बढ़ जाते हैं यूँ ही।

लाल रंग के गुलाबों से 
हसीं इन गाल पर क्यूँ री,
गिराने रेशमी जुल्फें 
हाथ उठ जाते हैं यूँ ही।
                                                       - ख़ामोश 





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