Wednesday, October 31, 2012

पलकों पे

पलकों पे 


पलकों पे अपनी 
तुम को बिठा कर, 
दूर समंदर
में ले जाऊ।

लहरें बनेंगी
जो बलखाती, 
उन लहरों पर 
घर में बनाऊ।

कभी किनारा 
कभी समंदर, 
की मजधार में 
तुम को घुमाऊ।

कभी सीप में 
तुम संग छिप कर, 
कहीं दूर तक 
बहा चला जाऊ।
                                         - ख़ामोश 

जीवन हो जाए राग

जीवन हो जाए राग 

जीवन हो जाए राग 
न हो ढीले मन के तार
न वेदना का हो स्वर 
आंखें करें आनंदविहार
चाहता हूँ मैं ।


ले बूँदें भीगी पलकों से 
छलक दूं उन्हें तार पर
बज उठे संगीत कोई 
गुनगुनाऊ रात भर।
चाहता हूँ मैं ।
                                            - ख़ामोश 
    

सूरज की पहली किरण

सूरज की पहली किरण 


सूरज की पहली किरण 
या कोई खिलती कलि ,
बहारों की तुम 
छवि तो नहीं।

एक शायर की तुम 
कल्पना परि,
मीठे ख्यालों की तुम 
संगिनी तो नहीं।

जगा देती तूफां 
जो है कभी,
वो समंदर की तुम 
लहरें तो नहीं।
                                          - ख़ामोश 

तू कब आएगी


तू कब आएगी 

यादों की धूप में 
तेरे बिना मेरा कतरा-कतरा 
सूख गया है,

एक अंजान से सफ़र में 
मैं अकेला तन्हा-तन्हा 
न जाने कहाँ खो गया हूँ 
अपने सूखे होटों से 
तेरे प्यार की नरमी चिपकाए,

न जानें तू कब
बारिश बनकर आयेगी।
                                               - ख़ामोश 



प्रेम


प्रेम 

मैंने तुमसे निष्चल निष्वार्थ प्रेम किया 
कभी सूरज की पहली किरणों में 
कभी खिलते फूलों में 
कभी बारिश की बूंदों  में।

तुम ही मेरे पास चल कर आई 
सूरज की पहली किरणे बन कर 
खिलते फूलों की खुशबू बन कर 
बारिस की बूँदें बन कर।

मैं बाहें फैलाये खड़ा रहा 
और तुम मुझे रंगती रही 
मेरी सांसों को महकाती रही 
मुझे भिगोती रही।

अब तुम जा रही हो 
बहुत दूर-बहुत दूर 
मुझे रंगकर, महकाकर 
और भिगोकर। 
                                                   - ख़ामोश 




कौन हो तुम


कौन हो तुम 


कितने मधु का सार लिए 
कितने रंगों को अपार लिए 
कौन हो तुम यौवन की कलि 
आँखों में सुन्हेरा ख्वाब लिए।

अनबन सी करती पलकें लिए 
लुकती-छुपती मुस्कान लिए 
कौन हो तुम महका सा गुलाब 
खुशबू का घना संसार लिए।

आँखों में घनी मधुशाला लिए 
होटों पे रस का प्याला लिए 
कौन हो तुम पुष्पों की छठा 
सावन के मद का हाला लिए।
                                                     -ख़ामोश 





थोड़ा वक़्त


थोड़ा वक़्त 


थोडा वक्त अगर मिल जाता
उन नाजुक लम्हों की कश्ती को,
थोडा बहाव अगर मिल जाता
उस छूटे साहिल की बस्ती को।

क्या मंजर था जो गुजर गया
छूती लहरों में फिर उभर गया,
जरा पीछे मुड़कर देखो माही
तेरा सफर यही है ठहर गया !
                                                          - ख़ामोश 

कोई नागिन चुपके चुपके


कोई नागिन चुपके चुपके 


कोई नागिन चुपके-चुपके 
आँखों में यूँ बस गयी,
नींद अपनी चैन अपना 
रातें अपनी डस गयी।

थी बजुज क्या या इलाही 
खुद को समझा उनके काबिल,
उनकी कातिल-ए-हंसी पर 
क्या क़यामत कर गयी।

जुल्फ़ें अबरी होंठ सीरी 
खुल्द से ही आई होगी,
हम क्या बहके उस परी पर
 ख़ाक हमको कर गयी।
                                              - ख़ामोश 



तुम्हारी आँखों में बसने को


तुम्हारी आँखों में बसने को 


तुम्हारी आँखों में बसने को हम 
न जानें कब से तड़फ रहे थे,
है आज का दिन जश्न का दिन 
के न जाने कब से तरस रहे थे।

पड़े थे अब तक कफ़न में लिपटे 
मरे थे तेरे ही कुछ सितम से, 
सितम को कर-कर के याद तेरे 
ने जाने कब से तड़फ रहे थे।

तुम्हारी बाँहों में रखा सर है 
कतल करो या जिगर में ले लो, 
तुम्हारी बाँहों में मरने को हम 
ने जाने कब से तरस रहे थे।
                                                                  - ख़ामोश  

वो बारिश की बूंदे


वो बारिश की बूंदे 


वो बारिश की बूंदों का 
गालों से सरकना ,
वो बारिश की बूंदों का 
होटों से टपकना,
वो यौवन की आभा का 
बारिश में थिरकना',
वो मन का डगर से 
बारिश में फिसलना,
क्या आएगा मौसम ये 
फिर से दोबारा ,
वो बारिश की बूंदे 
वो बूंदों की धारा।
                                        - ख़ामोश 


Friday, October 26, 2012

तुम पर कविता मैं केसे लिखुँ


तुम पर कविता मैं केसे  लिखुँ  


तुम पर कविता मैं कैसे  लिखुँ 
जब कविता ही तुमको पिरोए हुए है।

इन जुल्फों को कैसे कहूँ मैं घटा 
जब सावन ही जुल्फों में सोये हुए है।

इन आँखों को कैसे कहू मधुशाला 
जब मदिरा ही तुमको भिगोए हुए है।

इन गालों को कैसे कहूँ मैं गुलाब 
जब गुलाब ही क़दमों में खोये हुए है।

                                                                   - ख़ामोश 

हसरत-ए-दिल का कोई एतबार नहीं


हसरत-ए-दिल का कोई एतबार नहीं 



हसरत-ए-दिल का कोई एतबार नहीं 
आज ख़ुशी कल गम, कोई गुलशन-ए-बहार नहीं।

 ख़लिश लेता है कभी, तो कभी मरह्हम लेता है 
रिश्वत लेता है, मगर दरोगा सा गुनाहगार नहीं।

मोहब्बत करता है, कोई गुनाह तो नहीं करता 
खुदा से वफ़ा की है, बेशक़ दुनिया का वफादार नहीं।

सोहबत-ए-शाब है और दाग-ए-फ़िराक है 
शुक्र है एक गरीब की तरह बेकार तो नहीं।

हालत बयां नहीं करता, खूँ में भीगा होकर भी 
इसे मालूम है, इसका कोई मददगार नहीं।

मंदिर-ओ -मस्जिद में जाकर क्या करेगा 'ख़ामोश'
खुदा तो है, मगर किसी का भी सलाहकार नहीं।
                                                                                 -ख़ामोश 

खुदा मुझे माफ़ करे


खुदा मुझे माफ़ करे 


मैं अपनी चोखट पर बैठा 
कुछ चंद सिक्के गिन रहा था,
अपने होटों की लकीरों को 
सुई से बुन रहा था।

कितना अजीब है ये सफ़र 
कितना गरीब है ये सफ़र,
मोह्हबत ख़रीदने के लिए
एक फ़कीर चुन रहा था।

खुदा मुझे माफ़ करे
 मैं बड़ा मतलबी हूँ,
'ख़ामोश' की पुकार पर भी 
मैं  सिर्फ़ अपनी सुन रहा था।
                                                                   -ख़ामोश 

तेरी खामोशियों ने



तेरी खामोशियों ने 


तेरी खामोशियों ने
 मेरे दर्द को पहचान लिया,
जो न समझा किसी ने भी 
वो तुमने जान लिया।

क्या कहें सितमगर तो चला गया 
सितम करके,
जख्मों को मेरे तुमने
अपना मान लिया।

बेपनाह था मैं न जानें 
कितनी मुद्दतो से,
अपने दिल में घर के
मुझे अपना नाम दिया।

क्यूँ मैं खुदा के पास जाऊ 
खुदा कहा है, 
जब फरिश्तों  ने ही मुझे 
अपना मान लिय।
                                                                - ख़ामोश 


खुदा से लड़ते-लड़ते मैं काफ़िर हो गया


खुदा से लड़ते-लड़ते मैं काफ़िर हो गया




खुदा से लड़ते लड़ते मैं काफ़िर हो गया 

मुझसे से क्यूँ  पूछते हो के खुदा कहा है।


महखाने में जाने को उसने मजबूर किया 
वरना हमें भी लोगों ने कभी अच्छा कहा है।

बेपर्दा है दिल तो आवारा कहला दिया गया
वरना परदे में हर सख्स यहाँ वहां है।

हुसन पर मरते है आशिक हसीनाओं के 
वरना बेचिराग कोई परवाना जलता कहा है।

मस्जिद में जाने को खुदा ने रोका नहीं 
वरना हर मस्जिद पर बड़ा सा ताला पड़ा है।
                                                            -ख़ामोश