Monday, November 19, 2012

तन्हाईयां

तन्हाईयां 

आज हमें तन्हाईयां 
उदास करतीं है,
आज हमनें लकीरों में 
तेरा चेहरा बनाया है।

अपने जज्बातों में सिमटकर 
छलकने को हैं आंखें,
अपनी दर्द-ए-मोहब्बत में 
दिल तड़पाया  है।

क्यूँ न कहें वक़्त को सितमगर 
सितम किये हैं हजार,
थोड़ी सी ख़ुशी दी क्या 
ग़म बरसाया है।

होंठ सिमटें हैं मोहब्बत में 
आह भर-भर कर,
'ख़ामोश' क्या कह सकेगा 
सिर्फ तेरा नाम आया है।
                                            - ख़ामोश  

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