Monday, November 12, 2012

मेरी ये जिन्दगी

मेरी ये जिन्दगी 

मेरी ये जिन्दगी तेरी अमानत हो गयी है, 
इसे ले जाओ आकर तुम कहीं ये खो गयी है।

कभी खामोशियों में तो कभी अनजान राहों में,
कभी गुमनाम शहरों में कभी चुपचाप आहों में,
बदलते मौसमों में ये सिमटकर सो गयी है।
मेरी ये जिन्दगी ........

तेरा अंचल पकड़कर के कभी लहरों में वो चलना,
हसीं सपनों के सागर में कभी अटखेलियाँ करना,
अकेली आज खुद ही ये मरुश्थल हो गयी है।
मेरी ये जिदगी .........

मेरे चंदा क्यूँ मुझसे दूर हो गहरी घटाओं में,
तड़पने हैं लगी सांसे नहीं है दम निगाहों में,
चिपककर के दीवारों से ये पागल हो गयी है।
मेरी ये जिन्दगी ..........
                                                                           - ख़ामोश 




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