I dedicate this Poem to my Beloved Father, a Divine Soul, and my Hero:
तू चला गया तो क्या हुआ,
मेरा ये जिस्म भी तेरा ही आधा है
ये जो रोशनी मिली है जीवन की,
इस रोशनी में तेरा ही साझा है
कभी ना समझ के अकेला हो गया हूँ,
मेरी हर सांस में तू अब कुछ ज्यादा है
बड़ा महफ़ूज़ है तू कहीं एक चिलमन में,
मैं भी महफूज हूं मेरा ये वादा है
तू चला गया तो क्या हुआ,
मेरा ये जिस्म भी तेरा ही आधा है
-पंकज 'खामोश'
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