Saturday, August 30, 2025

Papa

 I dedicate this Poem to my Beloved Father, a Divine Soul, and my Hero:


तू चला गया तो क्या हुआ,

मेरा ये जिस्म भी तेरा ही आधा है


ये जो रोशनी मिली है जीवन की,

इस रोशनी में तेरा ही साझा है


कभी ना समझ के अकेला हो गया हूँ,

मेरी हर सांस में तू अब कुछ ज्यादा है


बड़ा महफ़ूज़ है तू कहीं एक चिलमन में,

मैं भी महफूज हूं मेरा ये वादा है


तू चला गया तो क्या हुआ,

मेरा ये जिस्म भी तेरा ही आधा है


                              -पंकज 'खामोश'

Tuesday, August 4, 2020

देश मेरा अब बढ़ आया है

नवयुग की शुरुआत हुई है  
राम राज की बात हुई है,
शंख नाद अब बज आया है 
देश मेरा अब बढ़ आया है| 

कुछ उम्मीदें आगाज़ हुई हैं 
फिर से उड़ने की बात हुई है,
राम धनुष अब चढ़ आया है
देश मेरा अब बढ़ आया है| 

पहचान की अपनी सौगात हुई है
फिर नए सपनों की बात हुए है,
युवा जोश अब जग आया है
देश मेरा अब बढ़ आया है|  
                                     - पंकज 'ख़ामोश'
            

Saturday, May 9, 2020

Let’s be together and save the world




Let’s be together
And save the world.
Let’s be together
and save the world……!

The world is ours
And its only ours
Let’s save it
From the deadly virus…!
Let’s be together
And save the world...!

Come n’ raise the hope
By staying ashore
Let’s believe in
The storm is coming no more...!
Let’s be together
And save the world...!

The sun is coming bright
To dispel the dark away
Let’s hold the dreams
The guard is on the way……!!
Let’s be together
And save the world….! 
                                                    
                                            "Khamosh" 

Saturday, March 24, 2018

आओ तुम्हें देखूँ ज़रा

आओ तुम्हें देखू ज़रा
जैसे कभी सोचा नहीं
जैसे कभी जाना नहीं
आओ तुम्हें देखूँ ज़रा

तेरी भोली सी सूरत
और भोली भोली से बातें
मेरा चाँद आया पीछे
छोड़ अपनी रातें.......
आओ तुम्हें देखू ज़रा
जैसे कभी सोचा नहीं
जैसे कभी जाना नहीं

छोटे छोटे सपने लिए
बुनती मेरा छोटा आशियाँ
मेरा पंछी आया पीछे
छोड़ अपना आशमाँ.......
आओ तुम्हें देखू ज़रा
जैसे कभी सोचा नहीं
जैसे कभी जाना नहीं
                                    @ ख़ामोश


Saturday, February 13, 2016

तुम हो

तुम हो 

मेरे जीवन की अभिलाषाओं का दर्पण तुम हो,
मूक समर्पित मुझको मेरा अर्पण तुम हो । 

क्या माँगू कुछ शब्द नहीं मेरे ख्यालों में,
बन मदिरा तुम भर आई हो मेरे प्यालों में । 
अब और नहीं है अंश बचा जिसमें नहीं श्रण तुम हो,
मुझ पंकज की जीवन-संघ्या में हर कण तुम हो ॥ 

सावन की नित बारिश बन तुम मुझको भिगोती,
अनंत समंदर की गहराई बन तुम मुझको डुबोती । 
अब और नहीं है घट सूखा जिसमें नहीं श्रण तुम हो,
मुझ पंकज की प्रेम-प्रभा का हर अण तुम हो ॥ 

                                                                   - ख़ामोश 



Monday, October 5, 2015

क्या इसके बाद सवेरा है.....!!







शब्दों की हेरा फेरी में,

 एक अनजान पहेली में, 

उलझे धागों में बंधी सी,

 जीवन की नोका अंधी सी,

 क्यूँ बेकार का डेरा है, 

क्या इसके बाद सवेरा है,

 ये पूछे आभा अंधी सी, 

मेरे जीवन की संगी सी।

                                              -ख़ामोश