तुम हो
मेरे जीवन की अभिलाषाओं का दर्पण तुम हो,
मूक समर्पित मुझको मेरा अर्पण तुम हो ।
क्या माँगू कुछ शब्द नहीं मेरे ख्यालों में,
बन मदिरा तुम भर आई हो मेरे प्यालों में ।
अब और नहीं है अंश बचा जिसमें नहीं श्रण तुम हो,
मुझ पंकज की जीवन-संघ्या में हर कण तुम हो ॥
सावन की नित बारिश बन तुम मुझको भिगोती,
अनंत समंदर की गहराई बन तुम मुझको डुबोती ।
अब और नहीं है घट सूखा जिसमें नहीं श्रण तुम हो,
मुझ पंकज की प्रेम-प्रभा का हर अण तुम हो ॥
- ख़ामोश
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